hindisamay head


अ+ अ-

कविता

डू नॉट वरी

प्रांजल धर


चाहता भी नहीं
कि कसरती नौजवान बनकर
राष्ट्र की प्रगति का बीड़ा उठाऊँ।
‘बुजुर्ग’ नेताओं और उनकी करतूतों के
यशोगीत को ट्यूबलाइट की
इस मद्धम रोशनी में आखिर
पढ़ा भी कैसे जा सकता है!
 
जिम से निकलकर सीना फुलाकर
राष्ट्रवाद का बेसुरा गीत गाया जा रहा है
काले धन से राष्ट्र को
सजाया जा रहा है।
मानना ही पड़ेगा कि भीख माँगते
बेबस, लाचार बच्चे देश के ऊपर
‘स्वाभाविक’ बोझ हैं
ये छवि खराब करते हैं,
राष्ट्र की, उसकी साख की
उसके मान-सम्मान और स्वाभिमान की...
 
जीडीपी ग्रोथ रेट को नापता हुआ राष्ट्र
नौस्डैक की दया का याचक है
लोबोर-टोबोर इसी बढ़ती अर्थव्यवस्था के
घाव हैं जो गहरे हैं,
सरकार सुनाती है इन नौनिहालों को
विकास की ‘सुरीली’ धुनें
लेकिन इनके कान बंद हैं
या फिल्मी गानों के अंतरे हैं
इनकी चौखटों पर भुखमरी
और चीथड़ों के पहरे हैं,
इन्हीं बच्चों को
जीते चले जाने की भयानक बीमारी है...
 
और आखिरी वक्त पर सनसनाती बत्तियाँ
एंबुलेंस, मंत्रियों की कारें और
कारों की चमचमाती पंक्तियाँ।
हिदायतनुमा दिलासा के सिर्फ सवा तीन शब्द...
‘डू नॉट वरी’
क्या लिखोगे? किसके खिलाफ लिखोगे?
मार दिए जाओगे, ख्याल रहे।
‘पत्रकार एक दोयम दर्जे का गूँगा नागरिक है
वक्त की नजाकत को समझो, जानो
अपनी कलम को फालतू में
किसी कायर सैनिक की बंदूक की
तरह से मत तानो!’
 

End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में प्रांजल धर की रचनाएँ